Book Title: Chahdhala
Author(s): Maganlal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 3
________________ विषय-सूची पृष्ठ संख्या GIArm038 जिसप्रकार वायु के स्पर्श से अग्नि और अधिक प्रज्वलित हो जाती है, उसीप्रकार भावनाओं के चिन्तवन से समतारूपी सुख और अधिक वृद्धिंगत हो जाता है अर्थात् बारह भावनाओं का चिन्तवन न तो रो-रोकर और न ही हँस-हँसकर; बल्कि वीतराग भाव से करना चाहिए, जिससे समतारूपी सुख उत्पन्न हो। छठवीं ढाल में मुनि से लेकर भगवान बनने तक की सारी विधि सविस्तार बताई गई है। यहाँ पण्डितजी ने छठवें गुणस्थानवर्ती मुनि के अट्ठाईस मूलगुणों का वर्णन करने के पश्चात् स्वरूपाचरण चारित्र का वर्णन किया है, जिसमें आत्मानुभव का चित्रण बड़ी ही मगनता के साथ किया गया है; ऐसा लगता है - मानो पण्डितजी स्वयं मुनिराज के हृदय में बैठे हों और उनके अन्तरंग भावों का अवलोकन कर रहे हों। ___ इस छहढाला ग्रन्थ की रचना पर पण्डित टोडरमलजी कृत मोक्षमार्ग प्रकाशक का प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। दोनों ग्रन्थों की विषयवस्तु के क्रम में बहुत अधिक समानता है। संसार-दशा के चित्रण का निरूपण, तत्पश्चात् मोक्षमार्ग का स्वरूप - इन तीनों विषयों सम्बन्धी क्रम दोनों ग्रन्थों में समानता से पाया जाता है। मिथ्यात्व के गृहीत और अगृहीत - ये दो भेद भी इन ग्रन्थों में ही स्पष्टतया देखने को मिलते हैं, अन्यत्र नहीं। इस सम्बन्ध में एक बात यह है कि मोक्षमार्ग प्रकाशक के आद्य तीन अध्यायों का सार-संक्षेप छहढाला की पहली ढाल में व बाद के पाँच अध्यायों का सार-संक्षेप दूसरी ढाल में आ गया है। इसीप्रकार नौवें अध्याय की शुरुआत 'आत्मा का हित मोक्ष ही है। - से हुई है, उसीतरह तीसरी ढाल की शुरुआत 'आतम को हित है सुख सो सुख आकुलता बिन कहिये' - इस पंक्ति से हुई है। छहढाला और मोक्षमार्ग प्रकाशक की इस समानता पर दृष्टिपात करने पर एक अनुसंधानात्मक पहलू सामने आता है कि यदि कोई विद्वान चाहे तो छहढाला की तीसरी, चौथी, पाँचवीं एवं छठवीं ढाल का आश्रय लेकर उसका विस्तार करते हुए इस अपूर्ण मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ को पूर्ण करने की जिम्मेदारी का कार्य पूर्ण कर सकता है। आप सभी इस अद्वितीय कृति के माध्यम से अध्यात्म का मर्म समझकर अपना आत्मकल्याण करें, इसी भावना के साथ - १५-२१ विषय पहली ढाल मंगलाचरण ग्रन्थ-रचना का उद्देश्य, जीव की चाह गुरु-शिक्षा और संसार का कारण ग्रन्थ की प्रामाणिकता निगोद के दुःखों का वर्णन तिर्यंचगति में त्रसपर्याय की दुर्लभता और उसका दुःख नरकगति के दुःख, भूमि, वृक्ष, नदी, सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास का वर्णन मनुष्यगति के दुःख देवगति के दुःख पहली ढाल का सारांश : भेद-संग्रह, अन्तर-प्रदर्शन एवं प्रश्नावली दूसरी ढाल संसार-परिभ्रमण का कारण अगृहीत मिथ्यादर्शन और जीवतत्त्व का लक्षण जीवतत्त्व के विषय में मिथ्यात्व (विपरीत श्रद्धा) मिथ्यादृष्टि का शरीर तथा परवस्तुओं संबंधी विचार अजीव और आस्रवतत्त्व की विपरीत श्रद्धा बन्ध और संवरतत्त्व की विपरीत श्रद्धा निर्जरा और मोक्ष की विपरीत श्रद्धा तथा अगृहीत मिथ्याज्ञान अगृहीत मिथ्याचारित्र का लक्षण गृहीत मिथ्यादर्शन और कुगुरु के लक्षण कुदेव - मिथ्यादेव का स्वरूप कुधर्म, गृहीत मिथ्यादर्शन, गृहीत मिथ्याज्ञान गृहीत मिथ्याचारित्र, उसके त्याग तथा आत्महित में लगने का उपदेश दूसरी ढाल का सारांश : भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह एवं प्रश्नावली ब्र. यशपाल जैन प्रकाशन मंत्री ३२-३३ ३४-३५ ३६-३९ (iv)

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