Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ दणी अपछरा एह । अतुल्य एह छबी दीशे ॥ हो अ. ॥ ९॥ दासी ने पूछीयो तामा खण्ड उत्तर इशो दीयो ॥ हो. उ जुगरायकी पटनार । राय भेदज लीयो ॥ हो. रा.॥ निरखी। रमा निरंत । द्रष्ट पाछी नहीं फिरे ॥ हो. द्र. ॥ एहवी नारी नहीं सुणी कान । ते ए स्वर्ग थी गीरे ॥ हो. सु. स्वर्ग. ॥ १० ॥ थोडी देर ने मांय । सामायिक समय थयो । हो. सा. ॥ सता आदी परिवार । मेहल मांही गयो ॥ हो. नेह. ॥ महीप अद्रष्ट हुइ तेही राय मुरछा लही ॥ हो. राय. ॥क्षिण में हवो सावधान । दिले ते वसी रही॥ हो. दि ॥ ११ ॥ खान पान सन्मान । भाषण भागे नहीं गमें ॥ हो. भा. ॥ भुवन सुन्दरी N निरंत्र । नृप चित में रमें ॥ हो. नृप. ॥ पहिली ढास रसाल । अमोलख ऋषि कहे ॥ हो. अ.॥ धन्य २ जे जग माहे।सील में स्थिर रहे ॥हो. सी.॥१२॥७॥ दुहा। बेठा सयन । भवन विथे। मन में करे विचार। किण बिध ए प्रेमला मिले। करणो किस्यो उपचार ॥१॥ जगमें जन्म लेइ करी।जो नमिले यह नार ॥ तो जीवित निष्फल सही। धिक २ मुजअवतार २॥ धणी बेठा न धाडा पडे । करणो कांइ इलाज ॥ प्रताप सेण जो न हुवे । तो सीजे। मुज काज ॥ ३ ॥ करकट दुशमण भूप को । लेवण भेज्यूं राज । कोइ उपाय ऐसो रचूं फिर सीजे मुज काज ॥४॥इम बिकल्प ते चिन्तवे । करे सरीरका चेन ॥ कर ठपरकि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34