Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika
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लाले जी ॥ कांइ कहूं तुम पृथवी राजरी ॥ सुणो ॥ ६ ॥ अवनीपत अति शरमाया । भु. सु. प्रताप सेणने पास बुलायाजी । अब छोडनी सहू लज्जारी ॥ सुणो ॥ ७॥ भाइ तुज
कृपा मुजपे थासी । तो जोगी जी रोग गमासी जी। कहो कैसी इच्छा थांरी ॥सुणो में साची बात इहां दाखू । पण थारो डर मन राखूजी । मने देवो थे अभय बाचारी ॥ सुणो ॥ ९ ॥ प्रताप सेण रजू भावे । बचन भाइ कर ठावे जी । मत मुज डर राखो। लगारी ॥ सुणो ॥ १० ॥ इम सुण प्रद्युमन हर्षाया। महाराज भणी दरसायाजी । भुवन सुन्दरी मुज बन्धु प्यारी ॥ सुणो ॥ ११ ॥ तिणरो छल में कीधो । तिण सराप मुजने के दीधो जी । तिण थी गइ म्हारी आँख्यारी ॥ सुणो ॥ १२ ॥ प्रताप जी क्रोधे भराया | || तरिक्षण खड्ग उठायाजी ॥ अरे दुष्ट करूं थने ठारी ॥ सुणो ॥ १३ ॥ पतिवृतापे कलंक चडायो । इम मने प्रदेश पठायो जी। किहां गइ मुज प्राणाधारी ॥ सुणो ॥ १४ ॥ |॥ जोगी कहे सुणो राणा । थे चालो नी बचन प्रमाणा जी । ज्यों रेवे कीर्ती करारी ॥ पुणो ॥ १५ ॥ प्रताप जी सुस्त रहाया ॥ बचन देइ पस्ताया जी। सती गुटिका ली। कर मझारी ॥ सुणो ॥ १६ ॥ नेत्र उपर फीराइ । तब देखण लाग्या राइ जी ॥ लोक। सर्व थया अचंभारी ॥ सुणो ॥ १७ ॥ वीरसेण कहे सुणो श्वामी । ते सुन्दरी वन में

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