Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 31
________________ भु. सु. खण्ड नाजी । किम नहीं आया बार ॥ मधूकर बीती बातडी । करी सभा माहे उचार ॥ सवी । ॥ २ ॥ सब कहे यह अश्चर्य बडोजी । साक्षात देख्या प्रभाव ॥ जैन सरीखो धर्म नहीं। |तील सरीखो नहीं उपाय ॥ सघी ॥ ३ ॥ सब जणा निज स्थानक गया जी । मुलकमें । पसरी बात ॥ अवनी पत सुण इच्छा हुइरे । पुती मिलण ने आत ॥ सबी ॥ ४ ॥ राय भवन मे आवीया । जमाइ न दीयो सन्मान ॥ पत्र बतायो राय को जी। तब आगो समाधान ॥ सवी ॥ ५॥ मधुकर जा बेहन ने कह्यो जी । आया पिता जी एथ। N॥ बोलणो नहीं तिण थी हीवे जी । सती तब उत्तर देत ॥ सबी ॥ ६ ॥ दोष नहीं । पिता जी तणों जी । कर्म करे जिसो थाय ॥ रुसणो कदा करणो नहीं । भाइ दीजे आदर सवाय ॥ सवी ॥ ७ ॥ अवनीप आया मेह में जी । लज्जायत अति थाय ॥ सती उठ। वरणे नमी । कर्म दोष दरसाय ॥ सबी ॥ ८॥ आंधत होइ हृदय चंपी जी । पर-N| संस्था करी सवाय ॥ वात विगत संतोषीया ॥ जीम्या सह अधिक उमाय ॥ सबी ॥ ९/ N/॥ किनाक दिन के आंतरे जी । धर्म घोष ऋषि राय ॥ धणा मुनीवर परिवारस्यूं जी IN उतर्या बाग में आय ॥ सबी ॥ १० ॥ राजा आदी सबी जणा जी । मुनी दर्शन के काज ॥ गया अंतेवर संग लेइ जी । वंदी वेठ्या नम्याज ॥ सबी ॥ ११ ॥ मुनीवर ।

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