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पामी जी हवी लायो मुज महलांरी ॥ सुणो ॥ १८ ॥ दुष्ट इच्छा तिण ने दरसाइ तिण सराप मुज ने दियाजी । तिण थी पगकी हुइ खुडारी ॥ सुणो ॥ १९ ॥ जोगी कहे बात ए साची । अब रोग ने देवुं यम डाचीजी । फेरी गुटिका तब चरणारी ॥ पुणो ॥ २० ॥ सबी जणा सुख पाया । ढाल दशमीके मांयां जी । ऋषि अमोल सील सुखकारी ॥ सुणो ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा || प्रतापसेण मधुकर मिली | करे जोगी से | अरदास || तुम ज्ञानी पूरा गुणी । हम संदेह करो प्रकास ॥ १ ॥ जोगी कहे तुम मन बले । भुवन सुन्दरी नार || तेहने इहां प्रगट करूं । तो मुज नाम उचार ॥ २ ॥ दोइ जणा खुशी हुवा । लेगया महल के मांय । कर जोडी जुगराज कह । झट दो मुज बताय ॥ ३ ॥ सती अवसर देखी तदा । तिलक ते सिरथी निकाल । नमन किया प्रा- | गेशने । मूल रुपने निहाल || ४ || हर्षाश्चर्य दोनो भया । कहे धन्य तुज अवतार । ते सुख जाणे आत्मा । के सर्व नाण काधार ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ११ मी ॥ रघुपति जीरा जी || यह ॥ सुख समाचार पूछीया जी । भाइ बेन मिल्या दोय || अवसर मधुकर | देखनेरे । बायर आया सोय ।। सबी दिल हर्ष्या जी। देखी सील तणो प्रताप । सती गुण परेख्या जी । टली गया सब संताप । सवी दिल || आं ॥ १ ॥ लोक जोवे बाट जोगी