Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 17
________________ तस्कर गृही। तिहां थी वच आइ हो ॥ भवि ॥ १२ ॥ में कू कर्म कर्या नहीं । कहूं। खण्ड सोगन खाइ हो ॥ पती आत्रे जिहां लगे । राखो दया लाइ हो ॥ भवि ॥ १३ ॥ हिवे ।। आधार आपको । पडी चरण में आइ हो ॥ नृप टली दूरी करी । वोले रीस भराइ हो । Taln भवि ॥ १४ ॥ लज्जा हीणी पापणी । थने शरम न आवे हो ॥ झुठो बोली दूजा परे । । कूडो आल चडावे हो ॥ भवि ॥ १५ ॥ मधुकर कहे झुटी किम कहो । तव पत्र बताइ हो ॥ अक्षर यह तस हाथ का । चन्द्र पुर के जमाइ हो ॥ भवि ॥ १६ ॥ गुप्त रस्ते ।। मधूकर तदा । सती ने ले जावे हो ॥ स्मशाणमें उभी करी । इण परे बोलावे हो ॥ भवि N॥ १७ ॥ बाइ म्हारो दोषण नहीं। ऐसा कर्म हे थारो हो ॥ संभाल अब इष्ट देवने । कही कहाडी तरवारो हो ॥ भवि ॥ १८ ॥ सती नैनाश्रुत हुइ कहे । सुण म्हारी भाइ। हो । मरने से हूं ना डरूं । डर कलंक को आइ हो ॥ भवि ॥ १९ ॥ पती यह बात जो । जाणसे ! तो दुःख घणो पासे हो ॥ महारा कर्म छ जहवा । ते आयां जाणा से हो ॥ भवि ॥ २० ॥ इम कही श्री नवकार को । सती ध्यान लगायो हो ॥ बेहन ने मारण : भाइजी । जब खडग उठायो हो ॥ भवि ॥ २१ ॥ तिण समय आकाश में । हुइ एहवी । N वाणी हो ॥ मारा मती सती भणी । छ महा गुण खाणी हो ॥ भवि ॥ २२ ॥ कुसुम -

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