Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 25
________________ ताणीया पहा या । गनुन्य दीले कोइ पुग्य तो जी ॥ ७ ॥ सेठ तिण पासे आवा या। शिष्ट बचना बतलवीया । संतोषावीया । धैर्य देइ इम पुछतो जी ॥ ८॥ तुम कुण। खण्ड N|भमो किम वन विषे । दिल उदास थाणो दिसे । किसी जगीस । फरमावो कृपा करी । जी ॥ ९ ॥ मधुकर वीती बारता। सेठ आग उच्चारता । सेठ धारता । इण ने हूं राखं पूल परीरे ॥ १० ॥ चिन्ती कहे फीकर मत करो । महारी केण हृदय धरो। म संग चलो । सुत तणी परे राखस्यूं जी ॥ ११ ॥ कुँवर तिण साथे थयो । उपर थी सोग विसरी गयो । मिल्यो सुख चयो । पूर्व पुण्य की साखस्यूं जी ॥ १२ ॥ देशो देश फिरी रया । इम केता दिन वही गया । चन्द्र पुर गया ।वैपार करण तिहां रह्मा जी ॥ १३॥ एक दिन पाप उदय करी । कुँवर ने काटयो जीव जैहरी । चडी ते लेहरी । क्षिण भर मे मुर्छित थयो जी ॥ १४ ॥ सेठ देख फीकर करे । रोवे पीटे घणो दुःख धरे । मुख उच्चरे । अरे पुत्र तुज सी भयो जी ॥ १५ ॥ उपाव कर्या अति घणा । जोर न चाल्या कोइ तणा । क्षप्या घणा । सब जाण्योयोतो मुयो जी ॥ १६ ॥ सह जन अति दुःखीया । भइ । ले जावण बिध बणाइ स्मशाणो आइ । सहू सज्जन संग परवरी जी ॥ १७ ॥ डाल आठ पुरी थाइ । अमोलख ऋषि ए गाइ । पुण्य थी भाई । आइ मिले स्वजन IN

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