Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 24
________________ जंगल चित के विषे । रहणे में नहीं सार ॥ सुरी गुटिका प्रभाव से । कीनो पुरुषा कार ॥ १ ॥ सिरपर फेटो बान्धीयो । मुखे भभूती लगाय ॥ भगबां वस्त्र पेहरीया । तिलक छाप । शुभ ठाय ॥ २ ॥ समरना करके विषे। गले रुद्राक्षकी माल ॥ कीधी जोग विधी सह ।। दीपे अति विशाल ॥ ३ ॥ गुप्त मार्गे नीकली । गइ कन्तार के मांय ॥ नृप चौकस कीनी घणी । खबर कछु नहीं पाय ॥ ४ ॥ सती वे फीकर भूमंडले । फिरे स्वइच्छा गर ॥ हिवे मधूकर की वरता । सुणीयों सहू नर नार ॥ ५॥ ढाल ८मी ॥ राज ग्रहीतो नगरी जी ॥ यह ॥ मधुकर जल ले आवीयो । बेन को पतो नहीं पात्रीयो । घबरावीयो। बाइ २ करतो फीरे जी ॥ १॥ किहां गइ बेहन महा सती । थारो आधार हूं तो अति , । हे महामती । तुज विन मुज काळजो चिरे जी ॥२॥ जिहां कांइ आवाज थावे ।। तिहां दोड के ते जावे । वाइ नहीं पावे | मुरछा खाइ धरणी पडे जी ॥ ३ ॥ पवनथी । साव चेत थावे । इत उत ते वन में जावे । फीकर लावे । इम केइ दुःख तस नडे जी । N॥ ४ ॥ कब तुज दरसण पावसी । जब मुज ने सुख थावसी । चेन आवसी । धन घडी ते लेखस्यूं जी ॥ ५॥ कोण दुष्ट तुज ले गयो । न जाणू किम हरण थयो । इम दुह वयो । विजोग तणा दुःख रेखस्यूं जी ॥ ६ ॥ इतरे प्रदेशी वाणीया । आया भाग्य का ।

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