Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 26
________________ चरी जो ॥ १८॥ ७ ॥ दुहा ॥ तिण समय भुवन सुन्दरी । जोगी रुप के माय ॥ फि। रती ते मही मंडले । आ निकली तिण ठाय ॥ १ ॥ लोक समोह तिहां देखीयो । शो कि अक्रांद करंत ॥ पूछे तस जोगी तदा । कुण ए पुरुष मरंत ॥ २ ॥ एक के परदेशी राज सुत । मिलियो जंगल मांय ॥ सेठ पुल कर राखीयो। फिरत आया इण ठाय ॥ ३ ॥ अशुभ कर्म के जोग थी। उरगें डस्यो इण तांय ॥ तेहथी प्राणागत थयो । देस्या हिवे जलाय ॥ ४॥ सती तब चित चिन्तवे । जो निकले मुज भ्रात ॥ तो अपणे फिकरवा तणो शरम सार्थक थात ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ मी ॥ कुँवर जी अर जी सुणीये । मोय ॥ यह ॥ जोगी कहे अहो भाइ जी हम को। बतावो तेह कुँवार ॥ जो हमारी । इच्छा हुइ तो। करेंगे हम उपकार ॥भाइ जी देखो सत्य प्रभाव ॥ आं॥१॥ करामात बतावें तुम को। हम जोगी अवधूत ॥ हमारे हाथ उपकार बने तो । जगा देंवे । तुम पूत ॥ भाइ ॥ २ ॥ लोक हर्षी कुँवर कने लाया। देखीयासग्गा भाइ ॥ IN | ढोंग करी गुटि का मुख मेली । सील प्रभाव जे पाइ ॥ भाइ ॥ ३ ॥ सावध हुया सब अश्चर्य पाया । देखे द्रष्ट पसार ॥ कांइ कारणे दहां मुज लाया । बोले एम कुँवार ॥ भाइ ॥ ४॥ वृतात कही जोगी पग लगा | BE

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