Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika
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भु.सु.
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सुणो० रा० राजिन्द्र || राजा, इत्यादी पर नारीथी डूव्या महाराणो हो । सुणो० राजि - न्द्र ॥ १४ ॥ राजा, इन्द्रादिक नहीं वाळूं मनकर राया हो ॥ सुणो० इन्द्रा० राजिन्द्र ॥ राजा, तूं क्यों अशुची रुप देख मोहवाया हो । सुणो० तूंक्यों० राजिन्द्र ॥ १५ ॥ श्रोता, नृप चिन्ते यह मुज वशमे पडी आइ हो । सुणो० नृप० नारीस ॥ श्रोता, ए अबलकी जात भाग किहां जाइ हो । सुणो० अ० नारीश ॥ १६ ॥ श्रोता, इम चिन्ती निज ठामे फिरी आयो पाछो हो । सुणो० इम० राजिन्द्र ॥ श्रोता, फिर२ जोवा जावे लागे रुप आछो हो । सुणो० फिर० राजिन्द्र ॥ १७ ॥ श्रोता, निर्लज्ज बोलणो सती सुणी घबराई हो || सुमो० निर्ल० राजिन्द्र ॥ राजा, तुज पग किम नहीं टूटा फिरर आइ हो ॥ सुणो० तुज० राजिन्द्र ॥ १८ ॥ श्रोता, इम बचन सुणी उतरतां पग लचकायो हो । ॥ सुणो० इम राजिंद्र ॥ श्रोता, डर लाइने भूप निजठाम सिधायो ॥ सुणो० डर० राजिन्द्र ॥ १९ ॥ श्रोता, पीडा बहूली थावे घणो पस्तावे हो ॥ सुणो० पीडा० राजिन्द्र ॥ श्रोता, अनीती किया थी ऐसी आपदा पावे हो || सुणो० अनी राजिंद० ॥ २० ॥ श्रोता ढाल सातमी सती प्रभाव की दाखी हो ॥ सुणो ढाल० राजिंद ॥ श्रोता अमोलख ऋषि कहे | सत्य को साहिब साखी हो || मुणो० अमो० राजिंद ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ सती चिन्ते
खण्ड १

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