Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 20
________________ १ पहाड रती अन्याय ॥ चतुर ॥ १४ ॥ एक दिनमें छत्तेप चडी जी । जोयो तुज मेहल मांय ॥ कू कर्म करती देखनेजी । आइ रीस सवाय || चतुर ॥ १५ ॥ तिण पण मुजने देखीयो जी । जार गयो तब नाश | में गुप्त गयो तुज मेहलमें जी । भुवन सुन्दरी के पास ॥ चतुर ॥ १६ ॥ निर्लज्ज मुजने फसाव बाजी । कीधा बहूला उपाय ॥ कुल कलंकित जाणनजी । मुज अंग लागी लाय ॥ चतुर ॥ १७ ॥ में मन माहे जाणीयोंरे । जोप्रगट सी यह बात । तो कुल आपणो लाजसीरे । इम चिंती रथ मंगात ॥ चतुर ॥ १८ ॥ पिछले रस्ते लेयनेजी । मेली अटवी मांय ॥ अवनी पुरे कागद दियोजी । तुज सुसराने बात जणाय ॥ चतुर ॥ १९ ॥ प्रताप सेण अश्चर्य हुयोजी । अहो २ स्त्रीकी जात ॥ अफूके फूल सारखी जी ॥ विष भर्यो जेहनो गात ॥ चतुर ॥ २० ॥ लज्जा पामी चुपका रह्या जी ॥ चलावे सुखे राज || छुट्टी ढाल अमोलख कही जी । जोवो कपटीके काज ॥ चतुर ॥ २९ ॥ ७ ॥ दुहा || हिवे मधुकर भुवन सुन्दरी । करे वन फलका आहार || अवनी सयन गीरी घन रहन । वन दुःख केइ प्रकार ॥ १ ॥ एक दिन जल मिलीयो नहीं । लागी प्यास अपार | गीरी गहन जोता फिरे । वारी को आगार ॥ २ ॥ भुवन सुन्दरी थाकी घणी । कंठ रह्यो सोसाय ॥ बेठा तरु तल दोइ जणा । मधु चिन्त मम 1 २ पाणी ३ रथ न

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