Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 18
________________ वृष्टी सुर तिहां करी । सती सुख पाइ हो ॥ पंचमी ढाल संकट हरण । ऋषि अमोलख । गाइ हो ॥ भवि ॥ २३ ॥ * ॥ दुहा ॥ मधुकर अश्चर्य हुइ । पडयो सतीके पांय IN/ आँश्रूच रण पखाल तो । इण विध बोले वाय ॥१॥में पापी अजाण में। करण पिता की । पण ॥ तुज अपराध कियो घणो । ते खमजो मुज वेन ॥ २ ॥ सती कहे भाइ कोई को । इण में दोषण नांय ॥ मुज कमें मुज जीव प। विप्त पडी यह आय ॥ ३ ॥ धर्म पसाय दूरी हुइ । अव कहो कीजे काय ॥ मधुकर कहे अबी ग्राम में । बाइ जी जाणों नाय ॥ ४ ॥ कलंक गयां परिवार से । मिलस्यां धरी आणंद ॥ इम कही वन विचरण लगा । हिवे पाछे को सम्बन्ध ॥ ५॥ ढाल ६ ठी ॥ कपूर होवे अति उज्जलारे ॥N यह ॥ अवनीपत जोवो बाटडीरे । मधुकर आयो नाय ॥ चौकस करी भेट भेजनेरे। १॥ पालमटर १ अन्धा पत्तो न लग्यो किण ठाय । चतुरनर । जोवो कर्म चरित्र ॥ ७ ॥ स्माशणे आइ जोवता र । पुप्प पड्या तिण ठाम ॥ समज्या ते होती महासती जी। दोनों गया किण गाम N॥ चतुर ॥ २ ॥ जमाइ जी इसो जाणसी तो । किसा करती हवाल ॥ फिकर करता। घरे गयाजी । निकल्यो न कांइ सवाल ।। चतुर ॥३॥ निश दिन चिंता में रहे जी । घर हाणी जन हांस ॥ हिवे प्रद्युमन राय को जी । चरित करुं प्रकाश ॥ चतुर ॥ ४ ॥

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