Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 19
________________ खोटो खत लिख्यां पछे जी । अशुभ प्रगटया पाप जोग ॥ नेल गया अन्धा थयाजी JAखण्ड उपज्यो नहीं कछू रोग ॥ चतुर ॥ ५॥ पश्चाताप करे मन विषे जी। किण थी को नहीं । जाय ॥ किया कर्म उदय हुवा जी । लागे न कछू उपाय ॥ चतुर ॥ ६ ॥ प्रतापसेणN अरी जय करी जी । जीत नगारा बजाय ॥ चन्द्र पुर हर्षी आवीया जी। लाग्या भाइ के पाय ॥ चतुर ॥ ७ ॥ अद्रेष्ट भाइ ने देख ने जी। पूछे वे कर जोड ॥ कांड कारण थी भाइ जी । हुइ नत्र की खोड ॥ चतुर ॥ ८ ॥ कहे गरमी में खाइ घणी जी ।। तिण थी आइ सुज आँख ॥ उपचार तो कीधा घणा जी । ते सह - हुवा घृत। गोबर राख ॥ चतुर ॥ ९॥ फिकर करी मेहला आधीया जी । लाग्या दीठा कमाड ॥ दास ने पूछ्या कहे राय जी। दीना राणी जी ने कहाड ॥ चतुर ॥१०॥ अश्चर्य धर चि। Nन्ते चित में जी। फिस्यो अव गुण तिण मांय ॥ लाखीणो मुज बंधवो जी । किम कियो । एह उपाय ॥ चतुर ॥ ११ ॥ फिर आया भाइ कने जी। पूछे कारण जेय ॥ किम निका । ली तिण भणीजी। बीतक देवो केय ॥ चतुर ॥ १२ ॥ साच कह्यो जावे नहीं जी। जे। कियो पोते अन्याय ॥ पाप छीपावा पंचरची जी । बोले इणपर वाय ॥ चतुर॥ १३॥ वा पता हूं ती धूतारणीरे । तुज ने लियो थो भरमाय ॥ थारा देखत धरमिण वणीरे । पाछे क DALA

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