Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 16
________________ १ पथर आं ॥ चन्द्र पुर थी प्रताप सेण को। बांचीजो जुहारा हो । तुम पुली कूलंछनी । कहाडी घर के बारो हो । भवि ॥ २ ॥ कासीद पत्र ले चालीयो । अवनी पुरे आयो हो | सत्य सेण उभा आवारणे । तस पत्र बताया हो ॥ भवि ॥ ३ ॥ पत्र बांचीने भूपति अति क्रोध भरायो हो । करुर निजर सती सन्मुखे । जोवे तब रायो हो ॥ भवि ॥ ४ | ॥ रे अभाग्यणी दुष्टणी | कुल कलंक लगायो हो ॥ धिक्क २ तुज चतुराइने | विभचार उपायो हो ॥ भवि ॥ ५ ॥ पापणं पेटे पडयो होतो । तो नीव में देता हो ॥ जन्म तांइ मुंइ होती तो । दुःख कर रह तो हो ॥ भवि ॥ ६ ॥ कालो मुख कलंक से कर | यहां | क्यों आइ हो ॥ तुज देख्या मुज आंतडी । अभीसी दजाइ हो || भवि ॥ ७ ॥ इम कटुक बचन सूणी सती । पडी तिहां मुरछाइ हो || जलविना जलचलपरे । तडफ रही काइ हो ॥ भवि ॥ ८ ॥ सती बंधव मधुकर जी । बेहन आगम सुणीयों हो । दोडी आया मिलण भणी | देखी अश्चर्य थुणीयों हो ॥ भवि ॥ ९ ॥ नृप से पूछे कर जोड के । बाइ क्यों मुर छाइ हो । भूप कहे इण दुष्टणी । फेरी कुलपे स्याइ हो ॥ भवि ॥ १० ॥ लेजाइने अटवी विषे । दीजे सीस उडाइ हो । सती कर जोडी कहे । सुणो तातजी भाइ हो । भवि ।। ११ । पति प्रदेश संचर्या । करी जेठ अन्याइ हो ॥ वन में मेली

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