Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika
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भु. सु.Jसतीने जणायोरे । सुणी सती मन फीकर भरायो ॥ देखो ॥ १८॥ इत्ते भीलडी तिहां आइरे । देखी सतीने ते रीसाइरे । पती साथ लडाइ लगाइ ॥ देखो ॥ १९ ॥ एहने
खण्ड निकाल तूं घरवारे । नहीं तो हूं पडु अगेड मझारेरे । मंडयो क्लेश अनेक प्रकारे ॥ देखो ॥ १९ ॥ चोर सती ने कहे जावो वाइरे । सुण सती अति हर्षाडरे । सहजे फंद टल्यो ।
सील सहाइ ॥ देखो ॥ २० ॥ इम विचार करी ने चालीरे । हुइ चौथी ढाल रसालीरे। INकहे अमोल ऋषि उजमालो ॥ देखो ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ रन वन अटवी विहामणी।
रात तम भय कार ॥ स्वपद जीव गतो गत करे । सती एकली निराधार ॥ १॥ लागे । २वनकेपर काँटा काँकरा । शीतल बाजे वाय । खाड पाहाड उल्लंगती । नवकार स्मरती जाय ॥ २N
॥ पीछे को डरमन विषे । रखे कोइ पकड लेजाय ॥ पुण्य जोग अटवी लंधी । तब ५ मूर्य उग्यो दिने राय ॥३॥ निज पीयर की सीम में । आइ निकली तेह ॥ पूछत आइN IN पिता नगर । निज मेहल धरनेह ॥ ४॥ पोलीये कह्यो जाइ रायने । बाइ एकली आइ
बार ॥ तक्षिण राय सुण आवीयो । हिवे देखो कर्म प्रकार ॥ ५॥ * ॥ ढाल ५ मी ॥
बंधव बोल मानो हो ॥ यह ॥ तिण अवमर चन्द्र पुर पती । आयो निज पुर मांही है। IN ॥ पत्र लिख्यो अवनी पुरे । लाइ कपटाइ हो ॥ १॥ भविक जन सील सहाइ होम
३आवागम
४ उलघगा

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