Book Title: Bhuvansundari Sati Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Ek Shravika

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Page 11
________________ उभा रझारे । सती चमकी तिण वार हो ॥ श्रो॥ यह कुण आया मुज मेहलमेरे ॥ भु.सु । उफिकर पडयो अपार हा ॥ श्रो ॥ ॥ जोय ॥ ४॥ थर २ अंग धूजण लग्योरे । माणस खण्ड नहीं कोइ पास हो ॥ श्रो॥ महारो जोर यहां किशो चलेरे । रखे करे सील वीणास हो ॥ श्री ॥ जोय ॥ ५ ॥ नृप कहे न घबराबीयेरे । हं छू पृथवी को इशहो सुन्दर॥प्रिये । मुज पर कृपा करीरे । पूरण कीजे जगीश हो ॥ सुन्दर ॥ जोय ॥ ६ ॥ मुजपर प्रीती धर्या थकारे । पाम सो सुख सवाय हो ॥ सु ॥ प्रतापो गयो संग्राम मेंरे । जीव तो पाछो न आय हो । सु ॥ जोय ॥ ७॥ कटुक बचन सती सांभलीरे । बोली धीरप धार | हो ॥ राजेश्वर ॥ जेठ पिता की ठोड छोडे । बोली जो बचन विचार हो ॥ राजेश्वर ॥ जोय ॥ ८॥ पर प्रेमल नहीं पेखीये जी । जो इच्छो सर्व सुख हो ॥रा ॥ हाथ में कुछ आली नहीरे । उलटो पामसो दुःख हो ॥रा ॥ ९ ॥ रावण पद्मोतर राजीयारे । कीचक कौरव जाण हो ॥राजे ॥ सती को छल कियां थकांरे । दोइ भवे हुवा हैरान हो ॥ जोय ॥ १० ॥ भूधर कहे में समज्यूं नहीरे । मुजने एक थारी चहाय हो ॥ सुन्दर ॥ दुःख देणहार मुज को नहींरे । विचरुं जिम सुख थाय हो ॥ सु ॥ जोय ॥ १२ ॥ खुशी N/ थी जो मुज चाव सोरे । तो पासो सुख अपार हो ॥ सु ॥ तूं स्त्री की जात छरे ।

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