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वाधिकारः ।
सं० टी० - अब्दपिण्डः खेषुस्वरमः काय्र्योऽङ्कशरानिभिर्युक्तः, पुनरब्दपिण्डाच्छतन्नात्-कुनृपैर्भक्ते यल्लब्धं तत् पूर्वाङ्के युक्तं (द्वादशशतेन शेषितं ) शुक्रोच्चं भवति ॥
भा० टी० - शास्त्राब्द को ७५० से गुणा कर के उस में ३५९ युक्त करें, फिर शास्त्राब्द को १०० से गुणा करके १३१ का भाग देने से जो फल मिलै उसको पूर्व अङ्क में युक्त करने पर ( उसमें हर का भाग देने से शेष ) शुक्र के उच्च का ध्रुवा होता है ||
उदाहरण - शास्त्राब्द ८१२ को ७५० से गुणा तो ६००००० हुए इस में ३५० युक्त किया तो ६००३१९ हुए, फिर शास्त्राब्द ८१२ को १०० से गुणा किया तो ८१२०० हुए इस में १६१ का भाग देने से लब्ध अंशादि १०४।२०/१२ मिले, इसको ६०९३१९ में युक्तकिया तो ६०९८६३/२० ९२ हुए, इस में १२०० का भाग दिया तो शेष शुक्र का उच्चध्रुवा अंशादि २६३ | २०|१२ हुआ ॥
शकाङ्काः ।
१८३३ | १८५७ १८८१ १९०५ १९२९ १९५३ १९७७ २००१
शक
३३७ | ३५२ | ३६७
अंश
कला
| २६३ | २७८ | २९३ | ३०८ | ३२२ २० १५ ९ ४ ५८ ५२ ४७ ४१ ५२ १७ ४२ ७ ३० ५७ २२ ४७ विकला |२०२५/२०४९/२०७३ २०९७२१२१२१४५२१६९ २१९३ शक
३८२ ३९७ ४१२ ४२७४४२ ४५७ ४७२ | ४८६
३६ ३० २५ १९ १३ ८
२ ५९
१२
३७ २ २७ ५२ १७
४२ ७
२७
Aho! Shrutgyanam
अंश
कला
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