Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 176
________________ १५४ भास्वत्याम् । अंत होता है वाँ चन्द्रमा का मध्यान्त होता है तिस चन्द्रमा के मध्य में मानाङ्गुलार्द्ध धर के सूत्र को भ्रमावे उससे सूर्य के जेतने अंगुल के उतने ग्रास के अंगुल कहै, चन्द्र ग्रहण में यदि चलन दक्षिण का और शर उत्तर का होय तो पश्चिम वलन को देवे, यदि घलन उत्तर का और शर दक्षिण का होय तो पूर्वमें घलन को देवे सूर्य ग्रहण में इससे विपरीत अर्थात् यदि वहन दक्षिण का और शर उत्तर का होय तो पूर्व में वलन को देवे यदि वळन उत्तर का घर दक्षिण का होय तो पश्चिम में बलर को देवे ॥२॥ ___ चन्द्रसूर्पयोर्मानाङ्गुलस्पष्ट करणविधिःस्थित्यईनिम्नै रसवेदभक्तै मानामुलैः प्रापरतस्तदनात् । स्पर्शोथ मुक्तिश्च तदिष्ट काला दिन्दुग्रहेऽर्क ग्रहणे प्रतीपात् ॥३॥ सं टी०-चन्द्रमानामुलानि सूर्यमानाङ् गुलानि च स्थित्यईनिम्नै रसवेदभक्तैर्लब्धानि स्पर्श मोक्षाङ्गुला. नि स्युः, अथ स्पर्शोऽमुक्तिश्च तदनात् प्राग्परतः दातव्यानीति, वलनामात् स्पर्शे पूर्वभागे दातव्यानि मोक्षागुलानि परतःपश्चिमभागे दातव्यानीति तदिष्टकालादिन्दु ग्रहे तत्पूर्वोक्त स्पर्शकालो वा मोक्ष. कालो ज्ञानतव्यः, अर्कग्रहणे प्रतीपात् पश्चिमभागे स्पशकालः पूर्वभागे मोक्ष काल इति ॥३॥ Aho ! Shrutgyanam

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