Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 175
________________ परिलेखाधिकारः १५३ लानिदघात, यत्र शरान्तात्तमोर्द्ध शरस्यान्तस्तत्र राहोर्मध्यान्तः (राहुशब्देन छादक ग्रहणं ज्ञेयम्) राहोर्मध्ये मानांगुलाई धृत्वा सूत्रं भ्रामयेत् तेन सूत्रेण चन्द्रस्य यावत्यङ्गुलान्याच्छाद्यन्ते तावन्ति ग्रासागुलानि वाच्याऽनीति, यत्र सूर्यग्रहे शरस्यान्तस्तत्र चन्द्रस्य मध्यान्तः तस्मिन् चन्द्रमध्ये मानागुलाई धृत्वा सूत्रं भ्रामयेत् तेनार्कस्य यावत्यङ्गुलानि छाद्यन्ते तावन्ति ग्रासागुलानि वाध्यानीति, ततो वलनदानं यदि याम्यवलनं सौम्यशरस्तदा पश्चिमाभिमुखे वलनं देयं, यत्र सौम्य - वलनं याम्य शरस्तत्र पूर्वाभिमुखे वलनं देयं, सूर्यग्रहणे विपरीतं ज्ञातव्यमिति ॥ २ ॥ "शरवलनयोः स्यातामेक राशौ यदा शशी । वलनं हि तदा पूर्व भिन्ने जातौ तु पश्चिमे” ॥१॥ भा० टी० - चन्द्रमा या सूर्य के मानैक्य खण्डको मण्डल करके केन्द्रके मध्य में उत्तर दक्षिण रेखा करे, चन्द्रमण्डल के पूर्व भाग सौम्य पश्चिम भाग याम्य, और सूर्य मण्डल में पश्चिम भाग सौम्य पूर्व भाग याम्य संज्ञक होता है । चन्द्र का या सूर्य का सौम्यशर होय तो उत्तर बलनदान यौम्य शर होय तो दक्षिण वलनदान करे, जहां पर शरका अंत होता है वहां राहु (छादक) का मध्यान्त होता है, राहु के मध्य में मानालार्ड घर के सूत्र को भ्रमावे उस से चन्द्रमा का जेवने अंगुल ढँके उतने ग्रासके अंगुल कहै, सूर्य ग्रहण में जहां शरका २० Aho! Shrutgyanam

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