Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 178
________________ भाखत्याम् । नन्त्यं भजेच्चन्द्रगुणैः फलोनः । द्विस्थस्तदष्टेन्दु लवे तद्युक्त स्त्रिस्थः द्विनिनोऽङ्गयुतोऽद्रिभक्तः ॥१॥ शेषे भवन्तीन्दु रविग्रहेऽस्मिन् पर्वाधिनाथाः शदृशाः फलैश्च । ब्रह्मेन्दु शक्रोत्तरदिर पाशि कृपीटयोन्यन्तकृतः क्रमेण" ॥२॥ भा० टी०-चन्द्रग्रहण में चन्द्रमा के मानांगुल को स्थित्यर्द्ध से गुणा करके उस में ६ का भाग देने से और सूर्य ग्रहण में सूर्य के मानाङ्गुल को अपने स्थित्यर्द्ध से गुणा कर के उस में ४ का भाग देने से लब्ध स्पर्श-मोक्ष के अगुलादि होते हैं, यह बलन के आगे से स्पर्श काल के अंगुल को पूर्वभागदेवे मोक्षकाल के अंगुल को पश्चिम भाग में देवे, सूर्य ग्रहण में पश्चिम भाग में स्पर्श काल पूर्व भाग में मोक्ष काल देवे ॥३॥ उदाहरण-चन्द्रमानाङ्गुल ११ । ४७ को स्थित्यर्द्ध २ । ४२ से गुणा किया तो ३१ । ४९ हुए इसमें ६ का भाग देने से लब्ध अङ्गु. लादि ५ । १८ मिले, सूर्यमानाङ्गुल १२ । ४९ को स्थित्यर्द्ध २०५४ से गुणा किया तो ३७ । १० हुए इस में ४ का भाग देने से लब्ध अंगुलादि । १७ मिले ।।३।। किया तो ५२८१ हुए इस को २ से गुणा किया तो १०५६२हुए इस में ६ को युत किया तो १०५६८ हुए इस में ७ का भाग देने से शेष ५ बचे इस से पाँचवा पर्वाधिपति वरुण हुआ । Aho ! Shrutgyanam

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