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पञ्चाङ्गस्पष्टाधिकारः।
४५ यदाभवेयुगणिताधिराज ! तदा मिलेत् कल्पगताब्दसङ्ख्याः ॥ ५॥
अङ्काद्रिभूरामभूजङ्गसर्पघाणेषुनन्देन्दुयुताः शकाब्दाः ।
सृष्ट्यब्दतां यान्ति विधिज्ञ ! मूर्धमालाललामार्चितपादपद्म ! ॥ ६॥ निधिशैलेन्दुरामैश्चेद् युताः स्युः शकवत्सराः। तदा सम्पद्यते सङ्ख्यातीनां शरदां कलेः ॥७॥
भा. टी.-गत सावन मास को ३० से गुणा कर के गत तिथि युक्त कर फिर उसमें ऋतु वासर घटाने से दिन गण होता है। गत सौर मास (वीती हुई सूर्य की संक्रान्ति ) ३० से गुणि उसमें सूर्य के गत अंश को युत कर फिर उस में मेषादि संक्राति का क्रम से ? । २।३।४।५।६।७।६।६। ५। ५। ५ यह क्षेपक युत करने से दिनगण होता है । दिन गण में ७ का भाग देने से शेष अब्दनाथ से गणना करने पर वार होता है॥१॥२॥ ___ उदाहरण-श्री सम्बत् १९६८ शाका १८३३ वैशाख शुक्ल १३ घार वृहस्पति के सूर्योदय पर स्पष्ठी है । गत सावन मास० को ३० से गुणा तो ० हुआ इसमें गत दिन २७ युक्त किया तो २७ हुए इसमें ऋतु वासर ०घटाया तो अहमण २७ हुआ। गत सूर्य की राशि० को३८से गुणा तो ० हुआ इसमें गत अंश २६ युत किया तो २६ हुए फिर क्षेपक १ युक्त करने पर दिन गण २७ हुआ । इसमें ७ का भाग देने से शेष ६ बचे अतः वर्षेश शुक्र से गनने पर छठवाँ वृहस्पति वार आया ( अभिष्ट वार के लिये एक न्यूनाधिक करै ) ॥१॥२॥
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