Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ - - १३६ भास्वत्याम् । अथ चन्द्रग्रहणाधिकारः। द्विगुणितरवापर्वकालसंस्कार तत्कालिकराहु स्पष्टशरविधयःद्विघ्नो रविः पर्वकृताप्तयुतो दिग्भिस्तमोऽष्टनदिनं ध्रुवाड्यम् । तमो युतार्कात् खखभाप्तसौम्यम् याम्यं शरोऽल्पः स्वदशांशहीनः॥१॥ सं० टी०-हिनो रविः द्विगुणितसूर्यः पर्वकृताप्तयुतः तत्कालिकोऽर्को भवति । दिनं दिनगणमष्टनं दिग्भिविभाजितं तमध्रुवक आढ्यं युक्तं च तमोराहुःस्यात, अ. दिद्युतस्तम खखभाप्तं सप्तविंशतिशतैर्विभाजितं फलं सौम्ययाम्यशरः (एकेन त्रिभिर्याम्यः, द्वाभ्यां शुन्येन सौम्यः) खखभैर्भक्ते सप्तविंशतिशतेन गत गम्यं कृत्वा यदल्पं भवेत्तद्ग्राह्यं स्वदशांशेनहीनः स्पष्टशरो भवति ॥१॥ भा. टी-स्पष्ट सूर्य के दूना कर उसमें पर्षान्त नाड़ी का चतुर्थीश युत करने से पर्वकाल संस्कारित द्विगुणित सूर्य होता है। दिन गणको ८ से गुणि के उसमें १० का भाग देने से जो कब्ध मिलै बहराहु के ध्रुवा में युत करने से राहु होता है । पर्वकाल से संस्कारित द्विगुणित सूर्य में राहु के युक्त कर के २७०० का भाग देने से फल (२३ मिलैतो) याम्य (०२।४ मिलतो) सौम्यशर होता है (जिस दिशा का शर होता है उसी दिशा का ग्रास होता है) शेष को २७०० में हीन करने Aho! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182