Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 167
________________ १४५ चन्द्रग्रहणाधिकारः । लम्वन स्थिर लम्बन हुआ, स्थिर लंवन में नत १९२ को युत किया तो १३:२७ हुए फिर इस को ९० से गुणा तो १२१०१३० हुए, सूर्य १३८४५२।४ को दूना किया तो द्विगुणित सूर्य २०६९।४४८ हुआ, पर्व ४।१६ में ४ का भाग देने से फल ११४ मिले इसको द्विगुणित सूर्य २७६९४४।८ में मिलाया तो पर्वकाल संस्कारित द्विगुणित सूर्य २७७०1४८८ हुआ इसमें पूर्वनत होने से ९० से गुणे हुए स्थिर वन १२१०३० को घटाया तो १५६०।१८।८ बचे इसमें २७०० का भाग दिया तो फल० सौम्यशर हुआ, शेष १५१०।१८।८ को हर २७०० में घटाया तो शेष ११३९१४२।५२ बचे इन दोनों शेषों में दूसरा शेष न्यून है अत: इसमें इसके दशमांश १९३।१८।११ को घटाया तो सौम्यभर १०२५४३।४१ हुआ ॥ १॥ नतिळम्बनस्य रदौसंस्कारसूर्यमानविधि:पृथक् शतांशाधिकरुद्रभक्त स्तदनयोगान्तरितो नति: स्यात् । तल्लम्वनं दिग्गुणितं गुणाप्तम् हीनं धनं प्राक्परयोः खरांशोः॥२॥ ततस्तमः संप्रयुताच्छरश्च शरावनत्यान्तरयुक् स्फुटः स्यात् । मानं रवे ग्ययुताङ्गनन्दा . तद्राहकोऽधःस्थित एवचन्द्रः ॥३॥ सं० टी०-सशरः पृथक् स्थानद्वये स्थाप्य एकत्र शतांशाधिकरुद्रभक्तोऽन्यत्र फलं तदक्षयोगान्तरितः, यदा Aho! Shrutgyanam

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