Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 144
________________ १२२ भास्वत्याम् । चरविधि:-- घुवृन्दतोऽगाष्टकुभिर्गजाम्बुदैः स्वल्पंगतैष्योत्तर दक्षिणे तु । ततः खरामं क्रमशश्च दद्यात् सार्द्धं सषष्टं च दलं चरार्द्धम् ॥ २ ॥ सं० टी०--घुवृन्दतः सायन दिन गणाद् - अगाष्टकुभिर्गतगम्यं कृत्वा स्वल्पं ग्राह्यं सौम्यगोल संवन्धि चर दलं सौम्यं भवति, यद्यगष्टि कुभ्योऽधिको दिन गणो भवति, तदागाष्ट कुभिर्हीनं विधाय - अवशिष्टं गजाब्दैर्गम्यं कृत्वा स्वल्पं ग्राह्यं तत्संवन्धि चर दलं भवति, ततः खरामाप्तः क्रमशः त्रिंशत् सार्द्धं पञ्चचत्वारिंशत् सषष्टं पञ्चत्रिंशच्च दलं पञ्चदशं लब्धफलं ग्राह्यम्, भाग शेषं भोग्य खण्डकेन गुणितं पूर्ववत् खरामाप्तं, भुक्तखण्डकेषु युक्तं याम्योत्तर सम्वन्धि चर दलम जातम् ॥ २ ॥ भा० टी० -- सायन दिन गणको १८७ में हीन करने से सौम्य शेष होता है, यदि न घटै तो दिन गण में १८७ हीन करके उसको १७८ में घटाने से याम्य शेष होता है, सौम्य शेष में सौम्य शेष और सायन दिन गण में से जो न्यून होय Aho! Shrutgyanam

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