Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 151
________________ त्रिप्रश्नाधिकारः । १२९ स. टी.-खखेन्दु निम्नाच्छतगुणितायुदलाद्दिनार्धाद् गतैष्यनाड्याप्तफलं मध्यप्रभयासमेतं शतोनितं शतहीनं यत् तदशभिर्विभक्तं लब्धाङ्गुलाद्या -इसिताभा भवति ॥ ६॥ भा० टी०-दिनार्द्ध को १०० से गुणि के इसमें भुक्त या भोग्य घटी जो होय उसका भाग देने से जो फल मिलै उसमें मध्य प्रभा को युक्त कर के उस में १०० को घटाने से जो शेष बचे उसमें दश का भाग देने से (इप्सित्) अभीष्ट छाया होती है ॥६॥ उदाहरण-दिनार्द्ध १६।२९ को १०० से गुणा तो १६४८ । २० हुए, इसको सजाती किया तो ९८९०० हुए इसमें घटी ९।२० के सजाती पल ५६० का भाग दिया तो लब्ध १७६१३३ मिले (लब्ध ३६ मिलता है परन्तु घटी ९।२० से कुछ अधिक होने से ३३ ही ठीक है) इसमें मध्य प्रभा २३।२७ युत किया तो २००० हुए, इसमें १०० को घटाया तो १००० हुए, इसमें १० का भाग देने से लब्ध इष्ट छाया १०० अंगुलादि हुई॥६॥ लङ्कावधिदक्षिणाक्षविधिःलग्नं तु सूर्योदयतः प्रसाध्य स्वभोदयैस्सौर दिनानुपातात् । चन्द्राश्विनिघ्नापलभार्दिता च लङ्कावधेस्स्यादिह दक्षिणोक्षः ॥७॥ सं० टी०-स्वभोदयैः स्वदेशमानैः सौरदिनानुपातात् सूर्योदयतः लग्नं प्रसाध्य चन्द्राश्विनिना, एकवि Aho! Shrutgyanam

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