Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office

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Page 147
________________ त्रिप्रश्नाधिकारः। १२५ भाषावार्तिक-सौम्य शेष और सायन दिन गण में जो न्यून होय उसके, तथा याम्य में दोनों शेषों में जो अल्प होय उसके तुल्य चर सारणी में देखन से जो चर स्पष्ट मिलै उसे एक स्थान में लिखे, फिर शेषके दूसरे अङ्क को पहला चर जिस कोष्ठ का होय उस के चालन से गुणा करने से जो होय उस को एक स्थान हटाकर पूर्व चर में युक्त करने से स्पष्ट चर होता है। उदाहरण-दूसरे श्लोक के उदाहरण से सौम्य शेष १३६।५७ है, और सायन दिनगण ५०३ है, इन दोनों में सायन दिनगण अल्प है अतः इसके तुल्य चरसारणी में ( यहां सायन दिन गण का शेष संज्ञा कार्य साधन के लिये है ) देखने से याने सायन दिन गण के प्रथम अंक ५० के सामने देखने से ६८०२० मिले, और चालन धन २१० है इससे शेष के दूसरे अंक ३ को गुणा तो ३।३० हुए इसको एक स्थान हटाकर चर ६८।२० में युक्त करने से स्पष्टचर ६८।२३।३० हुआ। दिन रात्रिमान नतविधयःपलप्रभाघ्नं शरषड्यमाप्तम् । पञ्चेन्दुतस्तत् स्वमृणं स्वगोलात् । अहर्दलं व्यस्तमितोनिशाईम् तयोर्गतैष्यान्तरितं नतं च ॥३॥ सं० टी०-पलप्रभानं चर शरषड्यमाप्तं फलं तत् पञ्चेन्दुतः स्वमृणं प्रकुर्यात् पञ्चदशमध्ये सौम्य याम्यगोलवाद् धनमृणं कृतेसति, अहर्दलं दिनाई भवति तद्विगुणितं दिनमानं भवति दिनाई त्रिंशन्मध्ये व्यस्तं Aho ! Shrutgyanam

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