________________
पञ्चाङ्गस्पष्टाधिकारः ।
नक्षत्रविधिः
शताप्तमृक्षं शतशोधितांशात् षष्ट्याहता भुक्ति हतास्तुनाड्यः । राशिः शशाङ्काच्छरजाति लब्धम् नक्षत्रवत् तद् घटिका भवन्ति ॥ १३ ॥ सं० टी० - शशाङ्काच्छताप्तं नक्षत्रं भवति, शतशोधितांशात् षष्ट्याहता भुक्ति हृता नाड्या भवन्ति, तु शरजाति लब्धं राशिर्भवति, तच्छेषात् नक्षत्रवद् घटिका अंशादयो भवन्ति, एवं सूर्य स्पष्टविधावपि - " राशिरस्फुटार्काच्छर जातिलब्धं खवह्नि निघ्नावशेषितोंऽशः ॥१३॥
www.tale
५७
1
भा० टी० - स्फुट चन्द्रमा ( भचक्र २७०० से अधिक होंय तो भचक्र से शोधिके) में १०० का भाग देने से लब्ध गत नक्षत्र होता है । शेष को ६० से गुणा कर सबर्णित करके चंद्रगति का भाग देने से वर्तमान नक्षत्र की गत घड़ी आदि मिलती है, और पूर्व शेष को १०० में घटा कर उस को ६० से गुणा करके सवर्णित करें, वाद उसमें चन्द्रमा की गति का भाग देने से वर्तमान नक्षत्र की भोग्य घड़ी आदि होती है । स्फुट चन्द्रमा में २२५ का भाग देने से लब्धराशि होती है, अंशादि नक्षत्र की घड़ी के प्रकार से स्पष्ट करे || १३ ||
उदाहरण – स्फुट चन्द्र १३६० । ४९ । २४ में १०० का भाग दिया तो फल गत नक्षत्र १३ वाँ हस्त मिला, शेष ६० । ४९ । २४ को ६० से गुणा करके सजाती किया तो भाज्य २१८९६४ हुआ,
८
Aho! Shrutgyanam