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पश्चाङ्गस्पष्टाधिकारः ।
• " अब्दो भवन्नः पृथगर्कहीनः खागैकलब्धेन युतः खरामैः । धाधिमासस्य तु योऽस्ति शेषस्सैकोऽर्कसङ्क्रान्ति तिथिस्तु चैत्रे " ॥ + "वारे रूपं तिथौ रुद्र नाड्यां पञ्चदशैव हि । एकत्रिंशत् पले देया जायते सूर्यसङ्क्रमः” ॥ १ ॥ "अष्टाधिमासाः स्युर्नित्यं प्रोच्यन्ते फाल्गुनादयः । सौम्य पौषौ क्षयं नित्यं भवेतामिति निश्चितम् ॥ १ ॥ क्षयो वाप्यधिमासो वा स्यादृर्ज इति निश्चितम् । न क्षयो नाधिमासः स्यान्माघो वै परिकीर्तितः ॥२॥
* उदाहरण - शास्त्राब्द ८१२ को ११ से गुणा किया तो ८९३२ हुए इसको दो जगह रक्खे एक जगह १२ घटाया तो ८९२० हुए इसमें १७० का भाग लिया तो लब्ध १२ मिले, इसको दूसरी जगह ८९३२ में युक्त किया तो ८९८४ हुए इसमें ३० का भाग दिया तो लब्ध अधिमास २९९ मिले, शेष ९४ बचे इसमें १ युत किया तो ११ हुए, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा गुरुवार के घटी २८ पल २१ पर मेष की संक्रान्ति हुई ।
+ श्रीसंवत् १९६८ शाका १८३३ में मेष संक्रान्ति वार ५ तिथि १५ घटी २८ पल २५ पर हुई है, इस में वार्षिक क्षेपक १।११।१५ ३१ को युक्त किया तो शाका १८३४ में मेष की संक्रान्ति वार ६ तिथि २६ - घटी ४३ पल ५६ पर हुई इसी प्रकार से वृष आदि सब संक्रान्तियों को स्पष्ट करे ॥
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