Book Title: Bhasvati
Author(s): Shatanand Marchata
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Series Office
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भास्वत्याम् ।
स्पष्ट गति विधिःमन्द स्फुटा शीघ्र गतौ विशोध्या
प्राग्वत् कृताभोग्यगुणाच्छताप्ता। वह्वल्प भोग्य स्वमृणं यथा स्याद्
वक्रागतिस्याद् विपरीतशुद्धा॥१५॥ सं० टी०-शीघ्र गतौ मन्द स्फुटा विशोध्या शीघ्र केन्द्र गतिर्भवति शीघ्र केन्द्र गतौ प्रागवत् पूर्ववद् भोग्य गुणाच्छताप्ता वह्वल्प भोग्यं स्वमृणं स्यात् शीघ्र केन्द्र खण्डान्तरं धनं चत्तदा प्राप्त फलं मन्द गतौ धनं, ऋणं चेदृणं कर्तव्यम् । यदा वक्र गतिः स्यात् तदाविपरीत शोध्या वक्रीग्रहपर घटीसम्भवं ऋणं कार्य पूर्व घटी सम्भवं धनं कार्य गतिः स्यात् (स्पष्टभुक्तिरंशादिकाष्टादशभिर्गुणिता कलादिका भवति, नक्षत्रानयनाथ राश्यादिकमष्टादशभिस्सकण्याष्टशतहरेल्लब्धमश्विन्यादि नक्षत्राणि भवन्ति शेषं शतद्वयेन हरेल्लब्धनात्र गत पादाः शेषं गतगम्य प्रकृत्य त्रिंशांशकराशेः कलादिकया स्फुटभुक्त्या भजेलब्धानि गतगम्य दिनसमूहान्यवशिष्टं षष्टयासगुण्य तथैवाप्ता घटिकादिका भवन्ति) ॥ १५ ॥
Aho ! Shrutgyanam

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