Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) इस लेखमालासे भी थोड़ा बहुत मनोरंजन करनेका उद्योग किया जाय। __यह लेखमाला १९१४ से सरस्वतीमें समय समयपर प्रकाशित होने लगी थी। इससे इसमें बहुतसे नवाविष्कृत ऐतिहासिक तत्त्वोंका समावेश रह गया है। परन्तु यदि हिन्दीके प्रेमियोंकी कृपासे इसके द्वितीय संस्करणका अवसर प्राप्त हुआ तो यथासाध्य इसमेंकी अन्य त्रुटियोंके साथ साथ यह त्रुटि भी दूर करनेका प्रयत्न किया जायगा। ___ इन इतिहासोंके लिखने में जिन जिन विद्वानोंकी पुस्तकोंसे मुझे सहायता मिली है उन सबके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ। उनके नाम पाठकोंको यथास्थान मिलेंगे। जोधपुर . ) निवेदकभाषाढ शुक्ला १५ वि० सं० १९७७ १ विश्वेश्वरनाथ रेउ। ता. १ जुलाई १९२० ई. ) For Private and Personal Use Only

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