Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01 Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसका खुलासा हाल इसी भागके परमार वंशके इतिहासमें मिलेगा। परन्तु अब समयने पलटा खाया है । बहुतसे पूर्वीय और पश्चिमीय विद्वानोंके संयुक्त परिश्रमसे प्राचीन ऐतिहासिक सामग्रीकी खासी खोज और छानबीन हुई है । तथा कुछ समय पूर्व लोग जिन लेखोंको धनके बीजक और ताम्रपत्रोंको सिद्धमन्त्र समझते थे उनके पढ़नेके लिए वर्णमालाएँ तैयार होजानेसे उनके अनुवाद प्रकाशित होगय हैं । लेकिन एक तो उक्त सामग्रीके भिन्न भिन्न पुस्तकों और मासिकपत्रों में प्रकाशित होनेसे और दूसरे उन पुस्तकों आदिकी भाषा विदेशी रहनेसे अँगरेजी नहीं जाननेवाले संस्कृत और हिन्दीके विद्वान् उससे लाभ नहीं उठा सकते । इस कठिनाईको दूर करनेका सरल उपाय यही है कि भिन्न भिन्न स्थानों पर मिलनेवाली सामग्रीको एकत्रित कर उसके आधारपर मातृभाषा हिन्दी में ऐतिहासिक पुस्तकें लिखी जॉय। इसी उद्देश्यसे मैंने 'सरस्वती'में परमारवंश, पालवंश, सेनवंश और क्षत्रपवंशका तथा काशीके 'इन्दु में हैहयवंशका इतिहास लेख रूपसे प्रकाशित करवाया था और उन्हीं लेखोंको चौहानवंशके इतिहास-सहित अब पुस्तक रूपमें सहृदय पाठकोंके सम्मुख उपस्थित करता हूँ। यद्यपि यह कार्य किसी योग्य विद्वानकी लेखनी द्वारा सम्पादित होनेपर विशेष उपयोगी सिद्ध होता, तथापि मेरी इस अनधिकार-चर्चाका कारण यही है कि जबतक समयाभाव और कार्याधिक्यके कारण योग्य विद्वानोंको इस विषयको हाथमें लेनेका अवकाश न मिले, तब तकके लिए, मातृभाषा-प्रेमियोंका बालभाषितसमान For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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