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भक्तामर स्तोत्र। यैःशांतरागरुचिभिः परमाणुमिस्त्वं निर्मापितस्विभुवनैकललामभूत। तावंत एव खलु तेऽम्यणवः पृथिव्यां यत्तेसमानमपरं न हिरूपमस्ति॥१२॥
+ + 2-जिन्हों करके। शांतराग जाता रहा है रागजिनका विइच्छा। परमाणु = पदगलका सबसे छोटा हिस्सा (जरी)।आप निर्मापित-धनायागया। त्रि-तीन ।भुवन जगत् । एक अकेला। ललामभूत भूषणरूप । तावन्त: उतने एव हो । खलु -निश्चयसे । तेस्थे। अपि =भी। अणका (परमाण)। पृथिवीजमीन । यत् = जिससे। ते तुम्हारे । समान -तुल्य ! अपर-दूसरा नहीं-नहीं। रूपं-रूप । अस्ति है।
___ अन्वयार्थ हे भगवन् तीन भुवनों के भूषण रूप तुम, शांत होगये हैं राग (मोह) अथवा (रंग) और रुचि -स्वाहिश जिनके ऐसे जिनपरमाणुवों से भाप बनाए गए हो वह परमाणु उतने ही थे जिससे कि तुम्हारे समान दूसरा रूप पृथ्वी में नहीं है ॥
भावार्थ- हे भगवन आप तीनलोक के भूषण हो जिन शांतराग इच्छा रहित “परमाणुवों से आपका शरीर बना है वह जगत् में उतने हो थे यही कारण है कि आप जैसा रूप और किसी दूसरे का नही है।
तुम प्रभु वीतराग गुण लीन । जिन परमाणु देह तुम कीन॥
हैं जितने ही ते परमान। - यातें तुम सम रूप न आन ॥१२॥
१२-परमाणु - सबसे छोटा जर्रा मान-भौर, दूसरा।