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भक्तामर स्तोत्र
३७ स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गणेष्टः, .. सद्धर्मतत्वकथनैकपटुस्चिलोक्याः। - दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थसर्व, भाषास्वभावपरिणामगुणैः प्रयोज्यः ॥ ३५ ॥
.. स्वर्ग =देवलोक । .अपवर्ग मोक्ष। गम जाना. मार्ग =रास्ता। विमार्गण = खोजना । इष्ट मित्र । सद्धर्म = श्रेष्ठधर्म । तत्वकथन = यथार्थकथन। एक पटु = एक चतुर ।, त्रिलोकी - तीनलोक । दिव्यध्वनि-दिव्य शब्द । (पाणी)। भवतिहोती है । ते तुम्हारी । विशद =उज्वल । अर्थ -अर्थ। सर्व-सकल। भाषा जुवान । स्वभाव = आदत । परिणाम- नतीज गुण-गुण प्रयोज्य प्रयोग किया। • मन्वयार्थ हे विभो स्वर्ग और मोक्ष में आने के लिये जो 'रास्ता उसके ढूंढने वा बताने में मिध (सहायक) तीनलोकों में सच्चे धर्म के तत्व कहने में एक पण्डित साफ साफ अर्थ तमाम जुबाने स्वभाव (भादत) परिणाम (नतीजे) और गुणों करके मिली हुई आप की दिव्य ध्वनि खिरती है ।
। - भावार्थ-हे भगवन् तीन लोक में जितने पदार्थ हैं सर्व का स्वभाव (खासि. यत) और स्वर्ग और प्राचीनं सत्यधर्म के असली तत्वों को दरशांती हुई सर्व भाषाओं में समझ आने पालो स्वर्ग और मोक्ष में जाने के लिये सच्चा रास्ता बताती हुई जगत के जीवों की हितु आपकी निर्मल दिव्यध्वनि स्त्रिरती है।
स्वर्ग मोक्ष मारगं संकेत। परम धर्म उपदेशन हेत॥ दिव्य वचन तुम खिरै अगांध। ..
...... सब भाषा गर्भित हितसाध ॥३५॥
३५-भारग-रास्ता।