Book Title: Bhaktamar Stotram
Author(s): Gyanchand Jaini
Publisher: Digambar Jain Dharm Pustakalay
View full book text
________________
भक्तामर स्तोत्र । प्रच्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल, मत्तभ्रमद्भ्रमरनादविष्टकीपम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतंतं,
४०
हष्ट्वा भयं भवतिनो भवदाश्रितानाम |३८|
ww
=
: श्चोतत - गिररहा ) ( बह रहा) । मद मद । आविल = व्याप्त | विलोल = चंचल 1. कपोल, मूल - गण्डस्थल । मत्त मस्त । अमदू - घूमते हुए । भ्रमर - मौरे । नाद = शब्द | विवृद्ध = बढ़ा | कोप- गुस्सा | ऐरावताम इन्द्र के हाथी के तुल्य । इम - हार्थी | उद्धत - मस्त । आपततू - आपडता हुआ । दृष्ट्वा = देखकर । भयं डर' | भवति = होता है | नो = नहीं । भवेत् = आपके । भाश्रित - आसरे वाला ॥
113
अन्वयार्थ – हे प्रभो ! बह रहे मद से भीगे हुवे चैचले गालों के मूल पर मस्त, धूम रहे भौरों के शब्द से बढ़ गया है गुस्सा जिसका इन्द्र के हाथी के समान कांति बाले. उन्मुक्त ऐसे आते हुये हाथी को देखकर आपके भक्तों को भय नहीं होता ।
भावार्थ- हे प्रभो चाहे कैसा हो भयंकर ऐरावत के तुल्य महामस्त, मदनमस गजेन्द्र तेरे भक्तों के सम्मुखं मारने के लिये आवें परन्तु तेरे नाम का आश्रय होने से तेरे भक्त वह नहीं डरते ॥
॥ छप्पे छन्द ॥
·
3:
24, 2007
मद अवलिप्त कपोल, मूल अलिकुल झंकारें ।
اده
""
तिन सुन शब्द प्रचण्ड, क्रोध उद्धत अतिधारें ॥.
IND.
3
1.
कालवर्ण विकराल, कालवत सनमुख धांवे । ऐरावत सम प्रबल, सकलजन भय उपजावै । . देख गजेन्द्र न भय करे, तुमपद- महिमा लीन । विपति रहित संपति सहित, वरते भक्त अदीन ॥
1
३८ - मद - हाथीका मद । अवलिप्त - लिपा हुवा । कपोल - गाले । भलि भौरा । उद्धतमन्त (मस्त)
:
}
-

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53