Book Title: Bhagvati Sutram Part 03 Author(s): Sudharmaswami, Publisher: Hiralal Hansraj View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५७४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १ पुद्गलना परिणाम विषे प्रथम उद्देशक छे, २ आशीविषादि संबंधे बीजो उद्देशक छे, ३ वृक्षादि विषे त्रीजो उद्देशक छे, ४ कायिकीआदि क्रिया विषे चोथो उद्देशक छे, ५ आजीवक विषे पांचमो उद्देशक छे, ६ प्रासुकदानादि विषे छट्टो उद्देशक छे, ७ अदत्तादान विषे सातमो उद्देशक छे, ८ प्रत्यनीक ( गुर्वादिना विद्वेषी ) विषे आठमो उद्देशक छे, ९ प्रयोगबन्धादिने विषे नवमो उद्देशक छे, अने १० आराधना इत्यादिने विषे दशमो उद्देशक छे. ] रायगिहे जाव एवं वयासी कहविहा णं भंते ! पोग्गला पन्नत्ता ?, गोयमा ! तिविहा पोग्गला पन्नत्ता, तंजहा - पओगपरिणया मीससापरिणया वीससापरिणया । (सूत्रं ३०८ ] ॥ [] राजगृह नगरमा यावत् [ गौतम ए प्रमाणे बोल्या - हे भगवन् ! केटला प्रकारना पुद्गलो कथा के ? [अ०] हे गौतम! त्रण प्रकारना पुद्गलो कथा छे. ते आ प्रमाणे- १ प्रयोगपरिणत ( प्रयोग एटले जीवना व्यापारथी शरीरादिरूपे परिणाम पामेला), २ मिश्रपरिणत ( मिश्र - प्रयोग अने स्वभाव बनना संबन्ध थी परिणाम पामेला), अने ३ विस्रसापरिणत ( विस्रसास्वभाव - थी परिणमेला . ) ॥ ३०८ ॥ पओगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा- एगिंदियपओगपरिणया बेदियओगपरिणया जाब पंचिदियपओगपरिणया । एगिंदियपओगपरिणया णं भंते! पोग्गला कहविहा पन्नत्ता?, गोयमा ! पंचविहा, पं०, तंजहा - पुढविक्काइयएगिंदियपयोगपरिणया जाव वणस्सइकाइयएगिंदियपयोगपरिणया । पुढविक्काइयएगिंदियपओगपरिणया णं भंते! पोग्गला कहविहा पन्नत्ता ?, गोयमा ! For Private and Personal Use Only ८ शतके उद्देशः १ ॥५७४ ॥Page Navigation
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