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भगवती सूत्र - श. १२ उ. ४ परमाणु और स्कन्ध के विभाग
चार संयोगी यावत् संख्यात संयोगी तक कहना चाहिए। ये सब भंग असंख्यात के अनुरूप कहना चाहिए, परंतु यहाँ एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहना चाहिए, यावत् एक ओर संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, संख्यात होते हैं और एक ओर एक अनन्त प्रदेशी स्कंध होता है, अथवा एक ओर असंख्यात प्रदेशी स्कंध, संख्यात होते हैं और एक ओर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध होता है, अथवा अनन्त प्रदेशी स्कन्ध संख्यात होते हैं ।
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असंखेज्जहा कज्जमाणे एगयओ असंखेज्जा परमाणुपोग्गला, एओ अणतपसि खंधे भवइ अहवा एगयओ असंखेज्जा दुपएसिया खंधा, एगयओ अनंतपए सिए खंधे भवड़; जाव अहवा एगयओ असंखेजा संखेज्जपएसिया खंधा, एगयओ अनंतपएसिए खंधे भवड़ अहवा एगयओ असंखेजा असंखेज्जपएसिया खंधा, एगयओ अनंतपए सिए बंधे भवइ अहवा असंखेज्जा अनंतपएसिया खंधा भवति । अनंतहा कजमाणे अनंता परमाणुपोग्गला भवंति ।
भावार्थ- जब उसके असंख्यात विभाग किये जाते हैं, तो एक ओर पृथक्पृथक् असंख्यात परमाणु- पुद्गल और एक ओर एक अनन्त प्रदेशी स्कन्ध होता है, अथवा एक और द्विप्रदेशी स्कन्ध, असंख्यात होते हैं और एक ओर एक अनन्त प्रदेशी स्कन्ध होता है, यावत् एक ओर संख्यात प्रदेशी स्कन्ध असंख्यात होते हैं और एक ओर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध एक होता है, अथवा एक ओर असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध असंख्यात होते हैं और एक ओर एक अनन्त प्रदेशी स्कंध होता है, अथवा असंख्यात अनन्त प्रदेशी स्कन्ध होते हैं ।
अब उसके अनन्त विभाग किये जाते हैं, तो पृथक्-पृथक् अनंत परमाणुपुद्गल होते हैं ।
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