Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 561
________________ २११६ भगवती मूत्र-स. १२ उ. १० आत्मा का ज्ञान अशान और दर्शन काइयाणं अण्णाणे ? ९ उत्तर-गोयमा ! आया पुढविकाइयाणं णियमं अण्णाणे, अण्णाणे वि णियमं आया, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, बेइंदियतेइंदिय जाव वेमाणियाणं जहा णेरड्याणं । - १० प्रश्न-आया भंते ! दंसणे, अण्णे दंसणे ? १० उत्तर-गोयमा ! आया णियमं दंसणे, दंसणे वि णियमं आया। ११ प्रश्न-आया भंते ! णेरझ्याणं दंसणे, अण्णे णेरइयाणं दंसणे ? ___११ उत्तर-गोयमा ! आया णेरइयाणं णियमा दंसणे, दंसणे वि से णियमं आया, एवं जाव वेमाणियाणं णिरंतरं दंडओ। भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! आत्मा ज्ञान-स्वरूप है या अज्ञानरूप है ? ७ उत्तर-हे गौतम ! आत्मा कदाचित् ज्ञान-स्वरूप है और कदाचित् अज्ञान स्वरूप है, परन्तु ज्ञान तो अवश्य आत्म-स्वरूप है। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिकों की आत्मा ज्ञानरूप है या नैरयिक जीवों का ज्ञान उससे भिन्न है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीवों की आत्मा कदाचित् ज्ञानरूप है और कदाचित् अज्ञान रूप है, परन्तु उनका ज्ञान अवश्य ही आत्मरूप है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिये ।। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा अज्ञान है या आत्मा से अन्य अज्ञान है. ?. ... ... .. ... . ९ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा अवश्य अज्ञानरूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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