Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 576
________________ भगवती सूत्र-श. १२ ३.१० परमाणु आदि की गद्रूपता हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-पञ्चप्रदेशी स्कन्ध के २२ भंग होते हैं । इनमें से पहले के तीन भंग पूर्ववत् सकलादेश रूप हैं । इसके बाद द्विसंयोगी वारह भंग हैं। त्रिकसंयोगी आठ भंग होते हैं। उसमें से यहां प्रथम के सात भंग ग्रहण करने चाहिये । आठवां भंग यहाँ असम्भव होने से घटित नहीं हो सकता । छह प्रदेशी स्कन्ध में और इससे आगे यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक तेईस तेईस भंग होते है। वे इस प्रकार हैं ___ असंयोगी तीन भंग १ आत्मा, २ नो आत्मा ३ अवक्तव्य । दो संयोगी १२ भंग १ आत्मा एक, नोआत्मा एक ७ आत्मा बहुत, अवक्तव्य एक २ आत्मा एक, नाआत्मा बहुत ८ आत्मा बहुत, अवक्तव्य बहुत ३ आत्मा बहुत, नोआत्मा एक ९ नोआत्मा एक, अवक्तव्य एक ४ आत्मा बहुत, नोआत्मा बहुत १० नोआत्मा एक, अवक्तव्य बहुत ५ आत्मा एक, अवक्तव्य एक . ११ नोआत्मा बहुत, अवक्तव्य एक ६ आत्मा एक, अवक्तव्य बहुत - १२ नोआत्मा बहुत, अवक्तव्य बहुत .... तीन संयोगी ८ भंग १ आत्मा एक, नोआत्मा एक, अवक्तव्य एक , २ आत्मा एक, नोआत्मा एक, अवक्तव्य बहुत ३ आत्मा एक, नोआत्मा बहुत, अवक्तव्य एक ४ आत्मा एक, नोआत्मा बहुत, अवक्तव्य बहुत ५ आत्मा बहुत, नोआत्मा एक, अवक्तव्य एक ६ आत्मा बहुत, नोआत्मा एक, अवक्तव्य बहुत ७ आत्मा बहुत, नोआत्मा बहुत, अवक्तव्य एक ८ आत्मा बहुत, नोआत्मा बहुत, अवक्तव्य बहुत परमाणु पुद्गल में तीन असंयोगी भंग पाये जाते हैं। दो प्रदेशी स्कन्ध में ६ भंग पाये जाते हैं, असंयोगी ३ और दो संयोगी ३, (पहला, पांचवां, नौवां) । त्रि प्रदेशी स्कन्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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