Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 570
________________ भगवती मूत्र-ग. १२ उ. १० परमाण आदि की गद्रूपत। २१२५ २० प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि त्रिप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् आत्मा है,' इत्यादि ? २० उत्तर-हे गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध १ अपने आदेश (अपेक्षा) से आत्मा है, २ पर के आदेश से नो आत्मा है, ३ उभय के आदेश से आत्मा और नो आत्मा इस उभय रूप में अदक्तव्य है, ४ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा, त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा और नो आत्मारूप है, ५ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय को अपेक्षा और बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा तथा नोआत्माएँ है, ६ बहुत देशों के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्माएँ और नो आत्मा है, ७ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभय (सद्भाव और. असद्भाव) पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध . आत्मा और आत्मा तथा , नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है ८ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से उभय पर्याय की विवक्षा से त्रिप्रदेशी कन्ध आत्मा और आत्माएँ तथा नो आत्माएँ इस उभय रूप से अवक्तव्य है ९ बहुत देशों के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभय पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशो स्कन्ध आत्माएँ और आत्मा तथा नो आत्मा इस उभय रूप से अवक्तव्य है । ये तीन भंग जानने चाहिये । १० एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभय पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो आत्मा और आत्मा तथा नो आत्मा से अवक्तव्य है, ११ एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से त्रिदेशी स्कन्ध नो आत्मा और आत्माएँ तथा नो आत्माएं इस उभयरूप से अवक्तव्य है। १२ बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याध की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो आत्माएँ और आत्मा तथा नो आत्मा उभय रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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