Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 569
________________ २१२४ भगवता मूत्र-... १२ उ. १० परमाण आदि की सद्रूपता असम्भावपज्जवे देसा आइट्टा तदुभयपजवा तिपएसिए खंधे णोआया य अवत्तव्वाइं आयाओ य णोआयाओ य, १२ देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवा देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे णोआयाओ य अवत्तव्यं आयाइ य. णोआयाइ य, १३ देसे आइटे सम्भावपजवे देसे आइटे असम्भावपज्जवे देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य णोआया य अवत्तव्यं आयाइ य णोआयाइ य । से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-'तिपएसिए खंधे सिय आया तं चेव जाव णोआयाइ य ।' भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा (सद्-रूप) है या उससे अन्य है ? १९ उत्तर-हे गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध १ कथंचित् आत्मा (विद्यमान) है, २ कथंचित् नो आत्मा है, ३ आत्मा तथा नो आत्मा इस उभयरूप से कथंचित् अवक्तव्य है, ४ कथंचित् आत्मा तथा कथंचित् नो आत्मा है, ५ कथंचित् आत्मा और नो आत्माएँ हैं, ६ कथंचित् आत्माएँ और नो आत्मा है, ७ कथंचित् आत्मा और आत्मा तथा नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है, ८ कथंचित् आत्मा और आत्माएँ तथा नो आत्माएँ उभय रूप से अवक्तव्य है, ९ कथंचित् आत्माएँ और आत्मा तथा नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है, १० कथंचित् नो आत्मा और आत्मा तथा नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है, ११ कथंचित् नो आत्मा और आत्माएं तथा नो आत्माएं उभय रूप से अवक्तव्य है । १२ कथंचित् नो आत्माएँ और आत्माएँ तथा नो आत्माएँ उभय रूप से अवक्तव्य है, १३ कथंचित् आत्मा, नो आत्मा और आत्मा तथा नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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