Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 573
________________ २१२८ भगवती सूत्र-श. १२ उ. १० परमाणु आदि की सद्रूपता है । ४-७ कथंचित् आत्मा और नोआत्मा है (एक वचन और बहुचन आश्री चार भंग) । ८-११ कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य है (एक वचन और बहुवचन आश्री चार भंग) । १२-१५ कथंचित् नोआत्मा और अवक्तव्य है (एक वचन और बहुवचन आश्री चार भंग)। १६ कथंचित् आत्मा और नोआत्मा तथा आत्मा, नोआत्मा रूप से अवक्तव्य है । १७ कथंचित् आत्ला, नोआत्मा और आत्माएं तथा नोआत्माएं रूप से अवक्तव्य हैं । १८ कथंचित् आत्मा, नोआत्माएं तथा आत्मा और नोआत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । १९ कथंचित् आत्माएं, नोआत्मा और आत्मा तथा नोआत्मा रूप से अवक्तव्य है। २२ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? २२ उत्तर-हे गौतम ! १ अपने आदेश से आत्मा है, २ पर के आदेश से नोआत्मा है, ३ तदुभय के आदेश से आत्मा और नोआत्मा-इस उभय रूप से अवक्तव्य है । ४-७ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से (एक वचन और बहुवचन आश्री)चार भंग होते हैं। ८-११ सद्भाव पर्याय और तदुभय पर्याय की अपेक्षा से (एक वचन बहुवचन आश्री) चार भंग होते हैं । १२-१५ असद्भाव पर्याय और तदुभय पर्याय की अपेक्षा से (एक वचन बहुवचन आश्री) चार भंग होते हैं। १६ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा, नोआत्मा और आत्मा नोआत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । १७ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से तभय पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा, नोआत्मा और आत्माएँ, नोआत्माएं उभय रूप से अवक्तव्य है । १८ एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभयपर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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