Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 536
________________ भगवती मूत्र-स. १२ उ ९ भव्यद्रव्यादि पांच प्रकार के देव २०९१ आकर उत्पन्न होते हैं ? ७ उत्तर-हे गौतम ! नै रयिकों, तिर्यञ्चों , मनुष्यों और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। यहां प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में कहे अनुसार भेद (विशेषता! कहना चाहिये। उन सभी के उत्पत्ति के विषय में अनुत्तरौपपातिक तक कहना चाहिये । इसमें इतनी विशेषता है कि असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले अकर्मभूमि और अन्तरद्वीप के जीव तथा सर्वार्थसिद्ध के जीवों को छोड़कर यावत् अपराजित देवों (भवनपति से लगाकर अपराजित नाम के चौथे अनुत्तर विमान तक) से आकर उत्पन्न होते हैं, परन्तु सर्वार्थसिद्ध के देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! नरदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं, क्या नैरयिक, तिर्यच, मनुष्य या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ८ उत्तर-हे गौतम ! वे नरयिक और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तिथंच और मनुष्यों से आकर उत्पन्न नहीं होते। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे नरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ९ उत्तर-हे गौतम ! वे रत्नप्रभा पृथ्वी के नरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, किंतु शकंराप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों से नहीं। १० प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? १० उत्तर-हे गौतम ! वे भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक-सभी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सभी देवों के विषय में यावत् सर्वार्थसिद्ध पर्यंत, व्युत्क्रान्ति पद में कथित विशेषता पूर्वक उपपात कहना चाहिये। ११ प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मदेव नरयिक आदि किप्त गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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