Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 526
________________ भगवती मूत्र-ग. १२ उ. ७ जीवों का अनंत जना मरण २०८१ कठिन शब्दार्थ-सुण्हत्ताए-स्नुपा-पुत्र-वधू रूप मे, भाइल्लगत्ताए-भागीदार रूप मे। ___ भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव, सभी जीवों के मातापने, पिता, भाई, बहन, स्त्री, पुत्र और पुत्रवधू के सम्बन्ध से पहले उत्पन्न हो चुका है ? १५ उत्तर-हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनंत बार उत्पन्न हो चुका है। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! सभी जीव, इस जीव के मातापने यावत पुत्रवधूपने उत्पन्न हो चुके हैं ? | १६ उत्तर-हां, गौतम ! अनेक बार या अनंत बार उत्पन्न हो चुके हैं। १७ प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव, सभी जीवों के शत्रुपने, वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक और शत्रुसहायक होकर उत्पन्न हो चुका है। १७ उत्तर-हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनंत बोर उत्पन्न हो चुका है। १८ प्रश्न-हे भगवन् ! सभी जीव, इस जीव के शत्रुपने यावत् शत्रुसहायकपने पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? १८ उत्तर-हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनंत वार उत्पन्न हो चुके हैं। १९ प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव, सभी जीवों के राजापने, युवराज यावत् सार्थवाहपने पहले उत्पन्न हो चुका है ? १९ उत्तर-हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनंत बार उत्पन्न हो चुका है। इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में भी जानना चाहिये। २० प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव, सभी जीवों के दासपने, प्रेष्यपने (नौकर होकर) भूतक, भागीदार, भोगपुरुष (दूसरों के उपाजित धन का भोग करने वाला) शिष्य और द्वेष्य (द्वेषी-ईर्षाल) के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? . २० उत्तर-हां, गौतम ! अनेक बार या अनंत बार उत्पन्न हो चुका है। इस प्रकार सभी जीव भी इस जीव के प्रति पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न हो चुके हैं। "हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है"ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ वारहवें शतक का सातवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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