Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 530
________________ भगवती मूत्र-श. १२ उ. ८ जीव का नागादि में उपपात २०८५ रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट सागरोपम की स्थिति वाले नरकावास में नरयिक रूप से उत्पन्न होते हैं ६ उत्तर-श्रमण भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि-हां, गौतम ! नैरयिक रूप से उत्पन्न होता है, क्योंकि 'उत्पन्न होता हुआ, उत्पन्न हुआ कहलाता है।' ७ प्रश्न-हे भगवन् ! सिंह, व्याघ्र आदि सातवें शतक के छठे अवसर्पिणी उद्देशक में कथित जीव यावत् पाराशर-ये सभी शील रहित इत्यादि पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न होते हैं ? ७ उत्तर-हाँ, गौतम ! होते हैं। ८ प्रश्त-हे भगवन् ! कौआ, गिद्ध, बिलक, मद्गुक और मोर-ये सभी शील रहित इत्यादि पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न होते हैं ? ८ उत्तर-हां, गौतम ! उत्पन्न होते हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-जो जीव देव भव से चवकर वृक्ष में उत्पन्न होता है, तो उसका पूर्व-संगतिक देव उस वृक्ष की रक्षा करता है और वह उसके समीप रहता है । अतएव वह वृक्ष देवाधिष्ठित कहलाता है। ऐसा देवाधिष्ठित विशिष्ट वृक्ष बद्धपीठ होता है । लोग उस पीठ (चबूतरा) को गोबरादि से लोप कर तथा वड़िया-मिट्टी आदि से पोतकर स्वच्छ रखते हैं। जो जीव नागादि के शरीर को छोड़कर मनुष्य शरीर को धारण करके मोक्ष को प्राप्त करते हैं । वे दो शरीर को धारण करने वाले नागादि कहलाते हैं। जिस समय वानरादि हैं, उस समय वे नारकरूप नहीं हैं । फिर नारकरूप से कैसे उत्पन्न हुए ? इस प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कहते हैं कि 'उत्पन्न होता हुआ भी उत्पन्न हुआ कहलाता है । इसलिये जो वानरादि नारकरूप से उत्पन्न होने वाले हैं, वे ' उत्पन्न हुए' कहलाते हैं । ॥ बारहवें शतक का आठवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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