Book Title: Bhagvati Sutra Part 04
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 511
________________ २०६६ ___भगवती सूत्र-श. १२ उ. ६ नित्यराहु पर्वराहु शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्र विरक्त (सर्वथा अनाच्छादित) हो जाता है और शेष समय में चन्द्र रक्त और विरक्त रहता है । जो पर्वराह है वह जघन्य छह मास चन्द्र और सूर्य को ढकता है और उत्कृष्ट बयालीस मास में चन्द्रमा को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढकता है। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! चन्द्रमा को 'शशी' (सश्री) क्यों कहते हैं ? ३ उत्तर-हे गौतम ! ज्योतिषियों का इन्द्र, एवं ज्योतिषियों का राजा चन्द्र के मगाङ्क (मग के चिन्ह वाला) विमान है। उसमें कान्त (सुन्दर) देव, कांत देवियां और कांत आसन, शयन, स्तंभ, पात्र आदि उपकरण है, तथा ज्योतिषियों का इंद्र, ज्योतिषियों का राजा चंद्र स्वयं भी सौम्य, कांत, सुभंग, प्रियदर्शन और सुरूप है, इसलिये चन्द्र को 'शशी' (सश्री-शोभा सहित) कहते हैं। ___ ४ प्रश्न-हे भगवन् ! सूर्य को 'आदित्य' (आदि-प्रथम-पहला) क्यों कहते हैं ? -४ उत्तर-हे गौतम ! समय, आवलिका यावत् उत्सर्पिणी और अवसपिणी आदि कालों का आदिभूत (कारण) सूर्य है, इसलिये इसे 'आदित्य' कहते विवेचन-राहु दो प्रकार का है- ध्रुवराहु और पर्वराहु । ध्रुवगहु चन्द्रमा के नीचे नित्य रहता है । चन्द्रमा के सोलह भाग (अंश-कला) हैं । कृष्णपक्ष में राहु प्रतिदिन चन्द्रमा के एक-एक भाग को आच्छादित करता जाता है । अमावस्या तक वह पन्द्रह भागों को आच्छादित कर देता है और शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक प्रतिदिन एक-एक भाग को अनावृत (खुला) करता जाता है । पर्वराहु जघन्य छह मास में चन्द्रमा को आवृत करता है और उत्कृष्ट ४२ मास में आवृत करता है । सूर्य को जघन्य छह मास में और उत्कृष्ट ४८ वर्ष में आच्छादित करता है। यही चन्द्र ग्रहण और सूर्य-ग्रहण कहलाता है । चंद्र सम्बन्धी देव और देवी तथा स्वयं चन्द्र कान्त्यादि से युक्त होने के कारण 'शशी' कहलाता है। समय, आवलिका, दिन, रात आदि का विभाग सूर्य से ही ज्ञात होता है, अर्थात् समयादि का ज्ञान करने में सूर्य 'आदि' (प्रथम) कारण है । इसलिये इसे 'आदित्य' कहते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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