Book Title: Bhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020 Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 7
________________ समुद्रविजय ने कहा कंस स्वयं हत्यारा और अपराधी था। अपराधी को दण्ड देना हमारा कर्त्तव्य है। श्रीकृष्ण ने जो किया वह बिल्कुल ठीक किया है। भगवान नेमिनाथ सोपाक दूत ने लौटकर जरासंध को भड़काया। जरासंध ने अपने पुत्र कालकुमार को आदेश दिया तुम सेना लेकर जाओ और यादवों को कुचल डालो। परन्तु सावधान रहना, कृष्ण बहुत चतुर छलिया है। ANKRAV/पिताश्री ! आप चिंता न करें, यदि वह अग्नि में भी प्रवेश कर गया होगा तब भी मैं उसे निकाल कर मार डालूंगा। SALES कालकुमार विशाल सेना लेकर श्रीकृष्ण को मारने चल दिया। इधर समुद्रविजय वसुदेव जी आदि ने निमित्तज्ञ (ज्योतिषी) को बुलाकर पूछा-- जरासंध के साथ हमारी सारी महाराज ! यह सत्य है कि बलराम-श्रीकृष्ण शत्रुता बंध गई है इसका महान् पराक्रमी हैं। जरासंध को मार कर ये अन्त कब होगा..... तीन खण्ड के अधिनायक बनेंगे, किन्तु अभी आपका इस प्रदेश में रहना ठीक नहीं है। SODO P निमित्तज्ञ ने कहा TVINDIA यहाँ से पश्चिम दिशा में समुद्र की ओर आप सपरिवार चले जायें। मार्ग में जहाँ सत्यभामा दो पुत्रों को जन्म देगी वहीं पर नगरी बसा लें। शत्रु आपका बाल भी बांका नहीं कर सकेगा। JAATAN पनि न 5 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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