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सखी ने झकझोरा
राजुल ! इतनी भावुकत पगली ! चल आज सभी प्रभु के दर्शन करने जा रहे हैं.....
प्रभु ! आपने नौ भवों की प्रीत पल भर में तोड़ डाली। अब मुझे भी वह मार्ग बताइए ! इस मोह से उबर कर वीतराग भाव में रमण करूँ? मुझे संयम दीक्षा दीजिये !
भगवान नेमिनाथ
हर्ष से पगलाई राजुल राजपरिवार के साथ रथ में बैठकर रैवतगिरि पर्वत की तरफ चल दी। वह रैवतगिरि के शिखरों को भाव-विह्वल होकर निहारने लगी।
रैवतगिरि की तलहटी में रथ रुक गया। पगडण्डी से राजुल बालक की तरह दौड़ती-उछलती चढ़ गई। गिरि शिखर पर भगवान नेमिनाथ का समवसरण लगा था। भगवान अपने आठ भवों की कथा सुना रहे थे। कथा समाप्त होते ही राजीमती आगे आई और प्रार्थना करने लगी
राजीमती के वैराग्य को देखकर राजा समुद्रविजय वासुदेव श्रीकृष्ण एवं उग्रसेन आदि सभी ने प्रभु से प्रार्थना की।।
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प्रभु ऊपर विराजे धर्म देशना दे रहे होंगे? कितनी मीठी होगी उनकी वाणी ! कैसा आनन्द आ रहा होगा .
10000-100
प्रभु ! इसका हृदय संसार से विरक्त हो गया है। इसे संयम दीक्षा प्रदान करें।
"गुर
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