Book Title: Bhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 32
________________ भगवान नेमिनाथ प्रभु ने स्थनेमि से कहा स्थनेमि ! अपने दुश्चरण के प्रति पश्चात्ताप और ग्लानि होना ही सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है। तुम तप करो, ध्यान करो, इसी से वासना का क्षय होगा . . . . मोह नष्ट होगा। राजीमती ने भी अनेक वर्षों तक साधना करके कर्मों का क्षय किया और मोक्ष पद प्राप्त किया। मुनि रथनेमि भी तप-ध्यान में लीन हुए निर्वाण को प्राप्त हुए। भगवान नेमिनाथ सौराष्ट्र आदि जनपदों में विचरते हुए अन्त में रैवतगिरि पर्वत पर पधारते हैं। आषाढ़ सुदि अष्टमी के दिन एक मास के संथारा पूर्वक भगवान ने निर्वाण प्राप्त किया। Atmaithununitatunner समाप्त आधार; उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २२ त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व ८, सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

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