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भगवान नेमिनाथ
सखियों ने धीरज बँधाया
राजुल ! रो मतः पिताश्री नेमिकुमार को मनाने गये हैं। मनाकर ले आयेंगे, तुझे जरूर ले जायेंगे।
नहीं, नहीं ! अब वे नहीं आयेंगे ...."अरे! मुझे उनके चरणों में पहुंचा दो, मैं ही अपने स्वामी को मना लूँगी, और किसी से वे
नहीं मानेंगे।
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इसी प्रकार रोती आँसू बहाती राजुल एकान्त में बैठकर । एक अज्ञात हर्ष से राजुल का रोम-रोम नाच उठा। रैवतगिरि पर्वत की तरफ देखती रहती थी। एक दिन एक उसने वहीं से अपने आराध्य देव को नमस्कार कियासखी ने आकर उसे सूचना दी
WAस्वामी ! सचमुच आपने जो चाहा सो
|मी पा लिया। मैं अभी भी मोह में पागल राजुल ! तेरे नाथ अब त्रिलोकीनाथ
LATE बनी हुई हूँ। वीतरागी से कैसा मोह ! बन गये। देख असंख्य-असंख्य
Byee कैसा प्रेम ! मेरे निर्मोही प्रभु, अब मुझे देव-देवियाँ आकर उनका कैवल्य
HTAuTI भी वीतरागता का मार्ग बताओ महोत्सव मना रहे हैं।
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भाव-विभोर हुई राजुल रैवतगिरि की तरफ हाथ जोड़कर बार-बार प्रार्थना करने लगी। उसकी आँखों से हर्ष के आँसू टपकने लगे।
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