Book Title: Bhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 29
________________ भगवान नेमिनाथ एकबार साध्वी राजीमती अनेक साध्वियों के साथ भगवान नेमिनाथ की वन्दना करने रैवतगिरि पर चढ़ रही थी। अचानक आकाश में काले-काले बादल गड़गड़ाने लगे। बिजलियाँ चमकने लगीं। सांय-सांय करती तेज हवा के साथ वर्षा की तेज बौछारें आने लगीं। साध्वियाँ तूफानी वर्षा से बचने के लिए पर्वत की गुफाओं में इधर-उधर आश्रय खोजने लगीं। राजीमती अपने समूह से बिछुड़ कर अकेली रह गई। उसने देखा-सामने एक गुफा है। वह उसी गुफा में आकर खड़ी हो गई। गुफा भीतर में बहुत गहरी थी। राजीमती ने सोचा मेरे वस्त्र पानी से भीग गये हैं। यहाँ एकान्त है, जरा अपने वस्त्रों को सुखा लूँ। Avahay इधर-उधर देखा, दूर-दूर तक अँधेरा था। राजीमती ने अपनी शाटिका सुखाने के लिए फैलायी। उसी गुफा में स्थनेमि ध्यानस्थ खड़े थे। बादलों की गड़गड़ाहट से उनका ध्यान टूट गया, वे ऊपर बाहर देखने लगे। अचानक बिजली चमकी तो सामने ही वस्त्र उतारती रानीमती खड़ी दिखाई दी। राजीमती को देखते ही। रथनेमि का मन डोल गया। मन का हाथी बेकाबू हो उठा। SO राजीमती! वाह!! 29 For Private & Personal Use Only callon Interational www.jainelibrary.org

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